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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हारे इंतज़ार में

तुम्हारे इंतज़ार में तुम्हारे इंतज़ार में लिखना चाहती हूँ युद्ध के दस्तावेजों पर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए जिससे मिट जायेगी युद्धों की तारीखें पिघल जायेगा औजारों का लोहा लहरायेगा हवा संघ शांति का परचम इंगित होगा जिसपर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए तुम्हारे इन्तजार में मैं लिखना चाहती हुं रेगिस्तान की पीठ पर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए जिससे पिघलेंगे विरह के बादल तपती रेत से निकलेगी एक नदी हो जायेगी तृप्त हर गगरी की देह गोद दूंगी पानी के ह्रदय में मेरा प्रेम तुम्हारे लिए तुम्हारे इन्तजार में मैं लिखना चाहती हुं मिट्टी में धंसे पंगड़डियों पर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए और वहां बैठ  मैं गुनगुनाना चाहती हूं एक गीत वर्षा के आगमन का निराश किसानों की पुतलियां अंकुरित कर  धान की पातियो पर अंकित करुंगी मेरा प्रेम तुम्हारे लिए ह

कर दिया है तूम्हें मुक्त

मैं तुम्हे मुक्त कर रही हूँ इस रिश्ते की डोर से क्योंकि कई बार मैने महसूस किया है  तुम्हारी पीठ पर मेरे  अदृ्श्य बोझ को इन दिनों अधिक बढ़ गया है हम दोंनो के बीच  कदमों का फासला भी कोशिश करती हूँ  कह दूँ  तुम्हारे कानों में  वही प्रेम के मंत्र जो प्रथम मुलाकात में तुमने अनायास ही घोलें थे मेरे कानों  में और समा गये थे तुम मेरे रोम -रोम में मैं स्वार्थी तो थी ही पर थोड़ी बेफ़िक्र भी हो गई थी तुम्हारी चाहत मे दिन-रात तुम्हारे ही इर्द -गिर्द चाहती थी मौजुदगी  जब तुम तल्लीन हो जाते थे अपने कर्मो में मै रहती थी प्रयासरत अपनी मौजुदगी का एहसास  कराने को जब कभी पड़ता था  तुम्हारे माथें पर बल और सिमट जाती थी  ललाट की सीधी सपाट रेखाएं मैं रख देती थी धीरे से  तुम्हारे गम्भीर होंठो पर अपनी उंगलियों को मेरा रूठना तो सिर्फ इसलिए होता था कि मैं तैरती रहूँ तुम्हारे मनाने तक  तुम्हारी ही श्वास एवं प्रच्छवास की उन्नत होती तरंगों पर जिम्मेदारियों के चक्र में जब जम जाती थी थकावट की उमस भरी धूप और शिथिल पड़ जाती थी मैं तुम मुझे उभारते बिना हाथों का स्पर्श किये और रख़ देते थे मेरे कदमों के निचे एक तह हौंसले