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जायज़ प्रश्न

तुम विकसित न करना 
खामोश रहने की कला 
गूंगे ध्वनियों के गमले 
हर चौराहे पर हर हुकुमशाहों के 
दरबार  के बाहर 
दिन-ब-दिन इन गमलों की 
तादाद बढ़ रही है धरती पर

यह समय है गुलगुली जमीन पर 
न्याय के प्रश्नों के बीज बोने का 
जब भविष्य के कान तैयार हो रहे हैं 
तब हम जायज़ प्रश्नों की 
हत्या में क्यों लगे हैं 

वर्तमान के कंधों पर 
हम  भविष्य की झोली 
टंगा रहे हैं तदउपरात
हम बहुत पीछे रहेंगे 
आगे जाएगे केवल 
आज के दहलीज से
उठाये कल के सवाल
अगर उसमें जायज प्रश्न नहीं रहेंगे 
तो तर्क नहीं होगा 
और बिना तर्क के जिजीविषा
 
तो जरूरत है हमें आज 
गमलों से गूंगी ध्वनियों को 
बाहर फेंक देने की
और उसमें रोपने होंगे सही प्रश्न 
लगानी होगी हुकुमशाहो के 
दरबार के बाहर एक वाजिब हाजिरी 
जिससे उछलें सवाल और 
पहुंच जाए भविष्य के कानों में 
पक्के सफर के लिए

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