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जायज़ प्रश्न

तुम विकसित न करना 
खामोश रहने की कला 
गूंगे ध्वनियों के गमले 
हर चौराहे पर हर हुकुमशाहों के 
दरबार  के बाहर 
दिन-ब-दिन इन गमलों की 
तादाद बढ़ रही है धरती पर

यह समय है गुलगुली जमीन पर 
न्याय के प्रश्नों के बीज बोने का 
जब भविष्य के कान तैयार हो रहे हैं 
तब हम जायज़ प्रश्नों की 
हत्या में क्यों लगे हैं 

वर्तमान के कंधों पर 
हम  भविष्य की झोली 
टंगा रहे हैं तदउपरात
हम बहुत पीछे रहेंगे 
आगे जाएगे केवल 
आज के दहलीज से
उठाये कल के सवाल
अगर उसमें जायज प्रश्न नहीं रहेंगे 
तो तर्क नहीं होगा 
और बिना तर्क के जिजीविषा
 
तो जरूरत है हमें आज 
गमलों से गूंगी ध्वनियों को 
बाहर फेंक देने की
और उसमें रोपने होंगे सही प्रश्न 
लगानी होगी हुकुमशाहो के 
दरबार के बाहर एक वाजिब हाजिरी 
जिससे उछलें सवाल और 
पहुंच जाए भविष्य के कानों में 
पक्के सफर के लिए

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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