तुम देख रही हो ना
नदी के तट पर नारियल के
तने हुए वृक्ष असंख्य
वे खड़े रहते हैं नदी के लिए
हर अच्छे-बुरे मौसम में
होना चाहता हूं
मैं भी
नारियल का वह वृक्ष
खड़ा /झूमता /तना हुआ
तुम्हारे लिए
जीवन के सभी मौसम में
तुम बनो नदी
मैं बनूं नारियल का वृक्ष
झूमता हुआ /तना हुआ
घर के भीतर जभी पुकारा मैने उसे प्रत्येक बार खाली आती रही मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब सामने वाली कुर्सी खाली रही हमेशा देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है जहाँ से लौटना असभव बना है अब
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