मेरा एकांत
कमरे में छाये
सन्नाटे का हिसाब
जब लगाता हैं
तब इतिहास
अपने पन्नें खोलकर
मेरे समक्ष आ बैठता हैं
पर मेरी जिद्द होती हैं
वर्तमान के लोहे सम
कवच से मैं ढक दूं
उसके पन्नें
और घास पर बैठी
ओस की बूँदे भर लाऊँ
अपनी अँजुरी में ,
सींच दूँ फिर से
एक और नींव भविष्य की
तभी उस कमरे के
सन्नाटे को चीर जाती हैं
दीवार पर लगी घड़ी
संकेत देती हैं
प्रहर के गुजर जाने का।
वाह! खूबसूरत सृजन...एकांत या अकेलापन?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🙏
हटाएंऔर घास पर बैठी
जवाब देंहटाएंओस की बूँदे भर लाऊँ
अपनी अँजुरी में ,
सींच दूँ फिर से
एक और नींव भविष्य की
वाह!!!
सकारात्मकता की ओर...
बहुत सुन्दर सृजन ।
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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