बेटे के आस में
पैदा की जाती रही बेटियाँ
वे बेटियांँ किसी बेल से
समय के पहले तोड़े हुए फल की तरह
अपरिपक्व मन से चली गई
और जिस दिन वे बेटियांँ
पिता और पति के घर की
बिच वाली देहरीं पर खड़ीं रही
एक कतरा आंसू के साथ
उस दिन पिता ने अपनी आंखें
पीठ पर लगा दी और
माँ ने दरवाजे पर जमी
पराई भीड़ समझकर सांकल चढ़ा दी
बेटे के आस में जन्मी बेटियांँ
उदास मन से बार-बार लौटती रही
मार्मिक
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