सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एक चिट्ठी

एक चिट्ठी गुम नाम पते पर 
लिखनी है मुझे 
उसके नाम जिसने 
गिरवा दिया था 
मेरे माथे पर 
एक रंग सिंदूरी 
और आती रही उससे गंध
बरसों तक जख्मों की
 

 जिसने मेरे उन्नत शीश को 
झुका दिया अनगिनत बार 
मेरे आंखों में बसे सुनहरे सपनों को
 करके छिन्नतार 
बहता रहा तेजाब बरसों तक

रखता रहा मेरी अंजूरी में 
भंभकते अंगारे और 
वर्षों तक मैं देती रही 
क्षमा का दान उसे 

हर वो सप्तपदी
 उसके साथ तय की थी 
वह अभिशाप बन 
मेरे बदन पर रेंगती  रही  
विषयले सांप समान 

उन सभी क्षणों को
 मैं रखना चाहती हूं 
चिट्ठी में और छोड़ आना चाहती हूं 
गांव की सीमा पर 
बड़ी मां के उस विश्वास के साथ 
अब तुम्हें किसी की नजर नहीं लगेगी
 भेजनी है मुझे एक चिट्ठी उस गुमनाम पते पर

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना