तुम देख रही हो ना
नदी के तट पर नारियल के
तने हुए वृक्ष असंख्य
वे खड़े रहते हैं नदी के लिए
हर अच्छे-बुरे मौसम में
होना चाहता हूं
मैं भी
नारियल का वह वृक्ष
खड़ा /झूमता /तना हुआ
तुम्हारे लिए
जीवन के सभी मौसम में
तुम बनो नदी
मैं बनूं नारियल का वृक्ष
झूमता हुआ /तना हुआ
अगर प्रेम का मतलब इतना भर होता एक दूसरे से अनगिनत संवादों को समय की पीठ पर उतारते रहना वादों के महानगर खड़ें करना एक दूसरे के बगैर न रहकर हर प्रहर का बंद दरवाजा खोल देना अगर प्रेम की सीमा इतनी भर होती तो कबका तुम्हें मैं भुला देती पर प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई वो लकीर है जो मेरे अंतिम यात्रा तक रहेगी और दाह की भूमि तक आकर मेरे देह के साथ मिट जायेगी और हवा के तरंगों पर सवार हो आसमानी बादल बनकर किसी तुलसी के हृदय में बूंद बन समा जाएगी तुम्हारा प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई वो लकीर है जो पुनः पुनः जन्म लेगी
अच्छी कविता। नदी के लिए वृक्ष का होना जरूरी है
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