घर के भीतर जभी
पुकारा मैने उसे
प्रत्येक बार खाली आती रही
मेरी ध्वनियाँ
रोटी के हर निवाले
के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा
तब तब सामने वाली
कुर्सी खाली रही हमेशा
देर रात बदली मैंने
अंसख्य करवटें
पर हर करवट के
प्रत्युत्तर में
खाली रहा बाई और का तकिया
एक असीम रिक्तता
के साथ अंनत तक
का सफर तय किया है
जहाँ से लौटना
असभव बना है अब
कुछ शून्य चाहकर भी कभी नहीं भरे जा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंभावपूर्ण सृजन!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंखालीपन को खूबसूरती से बयां करती कविता, वाह सरिता जी
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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