जनने के पूर्व ही
दफन की मिट्टी तैयार थी मुट्ठी में
लोरियों की मीठी तान
अंधकार में राह भटक गई
ईश्वर के दरबार में
शिकायतों की अर्जी लग गई
बारिश की धार अमृत सी
उसे सींच गई
उपेक्षा की नजरों की परिभाषा
कोमल निष्पाप मन क्या जाने
नन्ही उंगलियां उठती रही
पर स्पर्श न आया कोई उस ओर
हरे साम्राज्य की नींव में
होती है एक ऐसी ईट
जिसके ढेहने से
ढेह सकता है संपूर्ण स्वामित्व
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