एक चिट्ठी गुम नाम पते पर
लिखनी है मुझे
उसके नाम जिसने
गिरवा दिया था
मेरे माथे पर
एक रंग सिंदूरी
और आती रही उससे गंध
बरसों तक जख्मों की
जिसने मेरे उन्नत शीश को
झुका दिया अनगिनत बार
मेरे आंखों में बसे सुनहरे सपनों को
करके छिन्नतार
बहता रहा तेजाब बरसों तक
रखता रहा मेरी अंजूरी में
भंभकते अंगारे और
वर्षों तक मैं देती रही
क्षमा का दान उसे
हर वो सप्तपदी
उसके साथ तय की थी
वह अभिशाप बन
मेरे बदन पर रेंगती रही
विषयले सांप समान
उन सभी क्षणों को
मैं रखना चाहती हूं
चिट्ठी में और छोड़ आना चाहती हूं
गांव की सीमा पर
बड़ी मां के उस विश्वास के साथ
अब तुम्हें किसी की नजर नहीं लगेगी
भेजनी है मुझे एक चिट्ठी उस गुमनाम पते पर
बेहद मार्मिक रचना।
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