1.
मैं भोर के माथे पर
तिलक लगाकर
रात के पीठ पर
तुम्हारा नाम लिखते हूं
तुम्हारे लौटने की उम्मीद में
इस तरह में दिन-रात की
प्रहरेदार बन तुम्हारे
लौटने की प्रतीक्षा करती हूं
2.
तुम्हें फकत याद होगी
मेरी हड्डि वीहिन रीढ़
उन दिनों बात-बात पर
झुका करती थी मैं
3.
कभी-कभी
कुछ जगहों से
कुछ रिश्तो से
जाना हम नहीं चाहते हैं
भरपूर कोशिश करते हैं
बना रहे साथ
बना रहे शहर हमारे साथ
पर एक समय ऐसा आता है
पाषाण पर भी
बीज उगाने का हौसले रखने वाले हम
अपनों के चुभते शब्दों से
बदले व्यवहारों से निराश हो उठते हैं
नम आंखों से भारी कदमों से अलविदा कह जाते हैं
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें