बहुत से गांव इसलिए भी बचे हैं
क्योंकि गांवों में माये जिंदा है
और अक्सर शहर महानगर
कभी कभार बड़े भारी मन से
वहां हो आते हैं
नहीं तो अब कम ही लगती हैं
महानगरों की मिट्टी
गांव के सड़कों पर
एक समय यह भी था गांवों में
कोई भी राह गुजरता
बिढे पर बैठ
भागीदार बन जाता था
बटुले के अन्न का
पर अब डोरबेल बजने पर
अविश्वास की आंखें
दरवाजे से झांकती हैं
गांवों से हम शहरी
सब कुछ लेकर आए
श्रम का पसीना पोछने गमछा
पेट के भीतर की अतडिया
पर ओसारें पे बैठा भाईचारा
और बिना ताले के दरवाजे़ का भरोसा
तथा पूर्वजों की सभ्यता की डिबरियां
हम लाना भूल गए
अब भी बहुत से शहर महानगर
इसलिए भी गांव की तरफ मुड़ते हैं
क्योंकि वहां पर पुश्तैनी जायदाद बची हैं
अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!लाजवाब!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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