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कविता और कवि

कविता को मैं कोलाहल में से 
उठाकर लेकर आती हूं
और फिर कविता मुझे 
एंकात में लेकर जाती हैं 

कहीं बार शब्दों के
पोशाक पर मैं अटक जाती हुं
 फिर से कोलाहल के
बाजारों से चुनकर लाती हूं
कुछ मुलायम से कुछ मिर्च से 
और पहना देती हूँ मेरी कविता को
शब्दों का मैं पोशाक 

जिव्हा लेती हैं उसका स्वाद 
करती हैं कहीं क्रांति का आगा़ज
और फिर अज्ञानता के कुँऐ का
माप लेती हैं मेरी कविता 
कुम्हार के बंजर पड़े चाक पर 
फिसलती है मिट्टी बन मेरी कविता 
या फिर बेरोजगारी को
रोजगारी के नये मंत्र
सीखा आती है मेरी कविता

कविता को मैं कोलाहल में से 
उठाकर लेकर आती हूं
और  कविता मुझे एकांत में लेकर जाती हैं


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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

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