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एक ऐसा भी शहर



हर महानगरों के बीचो -बीच 
ओवरपुल के नीचे 
बसता है, एक शहर 
रात में महंगे रोशनी में सोता है 
सिर के नीचे तह करके 
अंँधियारे का तंकिया 

यहाँ चुल्हें पर पकती है आधी रोटी
और आधी  इस शहर की धूल

लोकतंत्र के चश्मे से नहीं दिखता
यह शहर क्यों कि इनकी झोली में 
होते हैं  इनके उम्र से भी अधिक 
शहर बदलने के पते

यह शहर कभी किसी जुलूस में 
नहीं भाग लेता है ना ही
रोटी कपड़े आवास की मांँग करता है 

पर महानगरों के बीचो-बीच
उगते ये अधनंगे  शहर
हमारे जनगणना के खाते में
दर्ज नही होते हैं

पर न्याय के चौखट के बाहर
नर या आदम का खेल खेलते
अक्सर हमारे आँखों में खटकते है

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 25 जुलाई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर, हकीकत को बयां करती रचना। 👍🏻

    जवाब देंहटाएं
  3. कटु सच्चाई को बयाँ करता सृजन। बधाईयाँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी कभी सच का आईना देखना आसान नही होता।
    यथार्थ चित्रण ।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. यहाँ चुल्हें पर पकती है आधी रोटी
    और आधी इस शहर की धूल
    कटु सत्य बयां करती बहुत सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. कटु सत्य कहती हृदयविदारक रचना |

    जवाब देंहटाएं
  7. ओह ! क्या चित्रण किया है।सजीव व सत्य कटु व कर्कश
    देरी के लिए क्षमा करें🥺🥺

    जवाब देंहटाएं

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