बेमतलब के किताबों
की भरमार
उगते नन्हे पौधे को
बहुत डराती है
जैसे दरबार में बैठकर
किसी कवि का लिखना
प्रजा को डराता है
जैसे किसी सलाखों
के पिछे कलम का
दम तोडना
डराता है आजादी को
जैसे चाटुकारिता
से कमाये पुरस्कार
डराते हैं योग्यता
के परिभाषित व्यक्ति को
हा यह समय
बहुत डरावना है
सच की कमीज़ पर
झूठ की जेब सिलाई
का डराता हुआ
समय है ये
वाह!वाह! गज़ब लिखा सराहनीय 👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सादर
जवाब देंहटाएंवाह गजब व्यंजनाएं,
जवाब देंहटाएंपहला प्रतीक गहन अर्थ समेटे।
लाजवाब।