मालिक ने छीन लिया था
उस दिन भरी बरसात में
पहरेदार का छाता
और कहा हट जाकर
खड़ा हो जा बाजू में
निकल न सकी कोई भी आवाज
उसके मुख से
आंखों से उसने
अपना विरोध जताया
मालिक के अंहकार ने
फन फैलाया
आंख दिखाता है तू मुझको
नाक भी लंबी हो गई है तेरी
उस गीली बरसात में
पहरेदार का दर्द
उसकी आँखों से आँसू बन
छलक पड़ा
अंतस का रोष थंडी बरसात पर
भारी पड गया
उस दिन उसने मालिक को
श्रेष्ठंता के सिहांसन से
उतारते हुए कहा
साहेब और कितना
हटूँ मैं बाजू में
मेरे बाप दादा रहा करते थे
पैरों तले आपके
और बरसों से मैं भी रहा हूँ
आपके बाजू में
आपके अलीशान केबिन का
खुलते ही दरवाजा
मैं ही होता हूं हमेशा से बाजू मे
हां पर!
एक वादा है साहेब
मेरा आपसे
मेरे जैसे खड़ी नहीं होगी
मेरी अगली पीढ़ी
आपके बाजू में
बल्कि वह खड़ी होगी
आपकी आने वाली पीढियो के
बिल्कुल समक्ष
नाक तो है ही नहीं
फिर वह लंबी होगी कहां से साहेब
बचपन में ही मां ने ही
रख दी थी
काटकर जेब में
जो आज भी वहीं पर है सुरक्षित
रईसों के फेंके हुए
कपड़ों में बने खीसों में
बाकी मेरे जैसे
साथियों की नाक
कटती गई है धीरे धीरे
पर मैंने पहले से ही
अपनी नाक काटकर
उसकी जगह चिपका दी है
लाचारी तथा गरीबी
पर मैंने संभाल कर रख दी
उचित जगह पर
मेरे बच्चों की नाक
समय आने पर साहेब
मिलवा दूंगा कभी मैं
अपने बच्चों की
नाक से
आपकी ऊँची रौबीली नाक
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जून 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यह भेदभाव न जाने कब खत्म होगा, सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति, वाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबच्चों को आगे बढ़ाने की अच्छी सोच ।
जवाब देंहटाएंयह दर्द समाज का कोढ़ है, जो धीरे-धीरे ही समाप्त होगा। मर्मस्पर्शी चिंतनशील प्रस्तुति
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