अपने आलीशान महलों से उठकर
कभी महानगर भी गांव जाता
राह तकते आंगन में
कुछ पल सुस्ताता
जर्जर होते चौक पर
लगी किसी नेता की
प्रतिमा के सामने
सेल्फी खीचता
किताबों की दुकान में भी
काश अपनी हाज़िर दे आता
जहाँ बोया गया था
उसके मन में एक बीज
कविताओं के सृजन का
पर आलिशान
महलों से उठकर
अब कहाँ
महानगर गाँव जाता है
आंगन के नाम पर
उसके पास शानदार
बालकनी जो है
महानगरों के बढियां
रेस्टोरेंट के सामने
गाँव के स्टेशन पर
बैठे चायवाले की
चाय का स्वाद
फिका जो पड़ गया है
अब फैशन के नाम पर
अपने दोस्तों के पास
महानगर बस एक संदेशा
भेज देता है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 12 मई 2022 को 'जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में ' (चर्चा अंक 4428 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर सृजन। सच कृष्ण को भी कहाँ सुदामा की याद आई।
जवाब देंहटाएंसादर
सही कहा है, अपनी जड़ों की भुलाकर हम सदा अपनी सुख-सुविधाओं का ही ध्यान रखते हैं
जवाब देंहटाएंसटीक! व्याख्यात्मक विश्लेषण सत्य के करीब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।