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प्रतिदिन



प्रतिदिन
तुम आते हो
अपने हाथों की मुट्ठी बाँधे
कानों में धीरे से अगिनित
शब्द
दोहराते हो
लोचन प्रणयसूत्र में
देते हो बाँध
भर देते हो
गालों में स्मित हास्य
बो देते हो उर में 
प्रेम बीज

तुम आते हो प्रतिदिन
अब तो नियम सा हो गया है
तुम्हारा आना
जैसे आता है सूरज , चाँद
जीवन में
दे जाते हो शब्दों के कण
और तुम चाहते हो
कण कण मिलाकर
मै ऋचाएं रचूं
आलोकित करु जीवन
पथ
गढू नई सृष्टि
विचरुं तुम्हारे साथ
अपने होने का आभास
करुं

न छुकर भी सब कुछ पाना
न होकर भी मुझको भर देना
मुट्ठी खोलकर अपने
हाथों को
मेरे हाथों में देना
चलो मेरे संग उस निशब्द
दुनियाँ में
मेरे भावों को तुम शब्दों में
पिरोना
मेरे साथी तुम प्रतिदिन आना ।

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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