1.
तुम फुर्सत में मुझे याद करते थे
और तुम्हें याद करते-करते
मुझे और किसी काम के लिए
फुर्सत ही नहीं मिलती थी
अजीब है ना यह प्यार भी
2.
हमने तो साथ चलने के लिए
साथ मांगा था तुमने तो
साथ छोड़ने के लिए साथ मांगा
फिर भी खामोशी से
तुम्हारा साथ देकर हम निकल गए
3.
सिज रही है एक कविता
जहां पर आप रहते हो
आपके ह्रदय के ताप की
अग्नि में पकते हैं मेरे शब्द
देह का नमक मिलाकर
बनती हैं एक कविता
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तीनों क्षणिकाएं दर्द को उकेरती भावों से परिपूर्ण ।
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को छू गई।
अप्रतिम सृजन।