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गर्भनाल की जमी

हमेशा एक दरवाजा 
खुला रखना उन बेटियों के लिए 
जो कुए की तरफ मुड़ने के पूर्व 
मुड़ जाए उस घर की तरफ 
जहां दीवारों ने सहेज रखी हैं 
उनकी पहली किलकारी ।

चखने दो  उन्हें पुन्हा 
उस नारियल का पानी 
जिसकी जड़ को उन्होंने सिंचा था
गुनगुनाते कोई फिल्मी गीत

जीने की आस खत्म हुई उन बेटियों को 
पुनः स्थापित करने दो संवाद 
मां के आंचल के साथ 
अलमारी में रखे उनकी 
पुरानी चीजों के साथ 
जिस पर आज भी मौजूद हैं 
नन्ही उंगलियों से लेकर
जवां हुए उनके हाथों का स्पर्श

इतनी भर गुजारिश है मेरी 
पितृसत्ता के पहरेदारों 
बेटियों को वंचित ना करो
उनकी गर्भनाल की जमी से 




टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५-०३ -२०२२ ) को
    'गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ'(चर्चा-अंक-४३८०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. समाज को आईना दिखाती गहरी सोच की
    अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. मार्मिक रचना, इसकी नौबत ही न आए इसके लिए पंख दो उन्हें उड़ें अपने पैरों पर खड़ी हों, जीवन से रूबरू हों न कि मौत से

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर रचना !
    काश कि कोई बेटी अब भगवान से यह प्रार्थना न करे -
    'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो'

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत हृदय स्पर्शी आह्वान किसी बेटी को ऐसे हालात का सामना न करना पड़े इतनी समर्थ बना दें उन्हें।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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