हमेशा एक दरवाजा
खुला रखना उन बेटियों के लिए
जो कुए की तरफ मुड़ने के पूर्व
मुड़ जाए उस घर की तरफ
जहां दीवारों ने सहेज रखी हैं
उनकी पहली किलकारी ।
चखने दो उन्हें पुन्हा
उस नारियल का पानी
जिसकी जड़ को उन्होंने सिंचा था
गुनगुनाते कोई फिल्मी गीत
जीने की आस खत्म हुई उन बेटियों को
पुनः स्थापित करने दो संवाद
मां के आंचल के साथ
अलमारी में रखे उनकी
पुरानी चीजों के साथ
जिस पर आज भी मौजूद हैं
नन्ही उंगलियों से लेकर
जवां हुए उनके हाथों का स्पर्श
इतनी भर गुजारिश है मेरी
पितृसत्ता के पहरेदारों
बेटियों को वंचित ना करो
उनकी गर्भनाल की जमी से
बढ़िया कविता, भावों से भरी 💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५-०३ -२०२२ ) को
'गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ'(चर्चा-अंक-४३८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद
हटाएंसमाज को आईना दिखाती गहरी सोच की
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
धन्यवाद सर
हटाएंमार्मिक रचना, इसकी नौबत ही न आए इसके लिए पंख दो उन्हें उड़ें अपने पैरों पर खड़ी हों, जीवन से रूबरू हों न कि मौत से
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंकाश कि कोई बेटी अब भगवान से यह प्रार्थना न करे -
'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो'
बिल्कुल
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा।
जवाब देंहटाएंबहुत हृदय स्पर्शी आह्वान किसी बेटी को ऐसे हालात का सामना न करना पड़े इतनी समर्थ बना दें उन्हें।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।