घर के भीतर जभी पुकारा मैने उसे प्रत्येक बार खाली आती रही मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब सामने वाली कुर्सी खाली रही हमेशा देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है जहाँ से लौटना असभव बना है अब
हर रिश्ते में दो लोग होते हैं एक वफादार एक बेवफा वफादार रिश्ता निभाने की बातें करता है बेवफा बीच रास्ते में छोड़कर जाने की बातें करता है वफादार रुक जाने के लिए सौ कसमें देता है वहीं बेवफा वफादार को इतना मजबूर कर देता है कि वफादार लौट जाता है और बेवफा आगे निकल जाता है रिश्ते की यहीं कहानी होती है अक्सर
बहुत से सपने मर जाते हैं मन के दराज़ के भीतर कुछ तो आत्मा से जुड़े होते हैं वहां पडे़ होते है शहरों के पत्ते नामों के साथ लगे सर्वनाम भी और ताउम्र इन सपनों के पार्थिव शरीर उठाये हम चलते हैं मृत्युशय्या पर हम अकेले नहीं हमारे साथ जलता हैं वो सब जिन्होंने ताउम्र जलाया होता है हमें बिना आग बिना जलावन के
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंगहन प्रतीक!
जवाब देंहटाएंनमक का हिसाब
आज भी बाकी है।
वाह!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंकैलेंडर केवल
जवाब देंहटाएंकुछ पन्नों का
महज एक दस्तावेज है
मेरे लिए
जिसकी हर तारिख पे
नमक का हिसाब
आज भी बाकी है
बहुत सटीक ...सार्थक एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!