मैं तुम्हे मुक्त कर रही हूँ
इस रिश्ते की डोर से
क्योंकि कई बार मैने महसूस किया है
तुम्हारी पीठ पर मेरे
अदृ्श्य बोझ को
इन दिनों अधिक बढ़ गया है
हम दोंनो के बीच
कदमों का फासला भी
कोशिश करती हूँ कह दूँ
तुम्हारे कानों में
वही प्रेम के मंत्र
जो प्रथम मुलाकात में
तुमने अनायास ही घोलें थे
मेरे कानों में
और समा गये थे तुम
मेरे रोम -रोम में
मैं स्वार्थी तो थी ही
पर थोड़ी बेफ़िक्र भी हो गई थी
तुम्हारी चाहत मे
दिन-रात तुम्हारे ही इर्द -गिर्द
चाहती थी मौजुदगी
जब तुम तल्लीन हो जाते थे
अपने कर्मो में
मै रहती थी प्रयासरत
अपनी मौजुदगी का एहसास
कराने को
जब कभी पड़ता था
तुम्हारे माथें पर बल
और सिमट जाती थी
ललाट की सीधी सपाट रेखाएं
मैं रख देती थी धीरे से
तुम्हारे गम्भीर होंठो पर
अपनी उंगलियों को
मेरा रूठना तो सिर्फ इसलिए होता था
कि मैं तैरती रहूँ तुम्हारे मनाने तक
तुम्हारी ही श्वास एवं प्रच्छवास की
उन्नत होती तरंगों पर
जिम्मेदारियों के चक्र में
जब जम जाती थी
थकावट की उमस भरी धूप
और शिथिल पड़ जाती थी मैं
तुम मुझे उभारते
बिना हाथों का स्पर्श किये
और रख़ देते थे
मेरे कदमों के निचे
एक तह हौंसले की
पर इस जद्दोंजहद में
तुम गुजरते थे
पीडा़ओं के गहनतम गहराइयों से
तुम टटोलते थे
इस रिश्ते का अस्तित्व
सहते होगें तूम
अनगिनत यातनायें
जब कभी तुम्हे खींचनी पड़ती होगी
हम दोनो के रिश्ते के बीच
एक महीन विभाजक रेखा
तब शायद तुम्हे होता होगा अपरमित दुःख
इसलिये मैने आज खोल दिये हैं
तुम्हारी मुक्ति के प्रत्येक दरवाजे
अपने हृदय पर
कठोर पाषण़ खण्ड रखकर
जिसमें सुरक्षित रखा है
तुम्हारा प्रेम और सुनहरी स्मृतियों को
हमेशा हमेशा के लिए।
ह
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
प्रभावी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंमन को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी सुंदर रचना मन को छू गई,सादर शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमैं तुम्हे मुक्त कर रही हूँ
जवाब देंहटाएंइस रिश्ते की डोर से
क्योंकि कई बार मैने महसूस किया है
तुम्हारी पीठ पर मेरे
अदृ्श्य बोझ को
बहुत सुंदर रचना
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सशक्त रचना | बार बार पढने वाली | बहुत बहुत शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएं