१)
अनगिनत वृक्ष
दुनिया भर की अलमारियों में
बैठे हैं मौन
और दीमकें जता रही हैं
उन पर अपना हक।
२)
संमदर में रोती हुई मछलीयां
सीप में रख देती हैं
अपने आंसूओं को
जो मोती बन चमकते हैं
धरती के गालों पर
३)
हर पार्वती के हिस्से
नहीं होते शिव
फिर भी वो अर्द्धनारीश्वर के रूप में
विचरती रहती है इस धरा पर !
४)
मैं तुम्हारे आंगन कि कृष्ण तुलसी बनकर
तुम्हारे ललाट पर स्थित
समस्त कठिन रेखाएं खींच कर
भस्म कर अपने देह के अंदर धर लूंगी
५)
हम दोनों के प्रेम में स्थित अधूरापन
तुम्हारे लौटने की परिभाषा है
बहुत सुंदर सृजन।🌻
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकाएँ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर क्षणिकाओं का अनूठा सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर औऱ भावपूर्ण क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंबधाई
संमदर में रोती हुई मछलीयां
जवाब देंहटाएंसीप में रख देती हैं
अपने आंसूओं को
जो मोती बन चमकते हैं
धरती के गालों पर
..."
...........अहा...वाह! प्रकृति के साथ कितना सुन्दर तरिके से संबंध बनाकर इन पंक्तियों को प्रस्तुत किया है। इनके भाव सीधे हृदय को स्पर्श कर गयें। बहुत ही बेहतरीन रचना।