सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

औरत कब की मर चुकी है जो देह में बची है


वेश्याओं की दहलीज पर
क्या किसी पुरुष ने 
प्रेम निवेदन किया होगा?

क्या कभी किसी पुरुष ने
रात-भर उसके बालों में 
गूंथे गये गज़रे के फूलो को 
सुरक्षित छोड़ा होगा?

क्या उसकी देह का नमक 
चखते समय
उसके मन के रिसते घाव 
गिने होंगे?

क्या किसी पुरुष ने 
महसूसी होगी उसकी 
बेचैन सांसे?
जिसमें बदन की आग नहीं 
बल्कि मन की भूख़ निहित हो 

क्या किसी पुरुष ने 
कभी उसके शरीर से 
निकलकर
उसके तकिए पर जमा 
अश्रु की बूंदे देखी होंगी?


क्या कोई पुरुष 
उसके मन के स्पर्श को
अपनी दहलीज के भीतर
ले जाने का साहस 
जुटा पाया होगा?

क्या कभी कोठे के दरवाजे से 
निकलकर कोई वेश्या
पहुँची होगी किसी घर की 
भित्तियों के भीतर
किसी की बहू,पत्नी या माँ बनकर ?

नहीं ना !
उसका कारण यहीं है
कि औरत केवल देह में बची हुई है
और देह में बची औरत 
कब की मर चुकी है
इसका अंदाजा शायद ही 
कभी किसी को हो सके।



टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 15 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारों को आंदोलित करने वाली मार्मिक रचना...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय स्पर्शी सुंदर रचना..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..

      हटाएं
  3. बहुत बहुत मार्मिक , सत्य और ह्रदय विदारक भी |

    जवाब देंहटाएं
  4. मार्मिक भाव से सृजित प्रभापूर्ण रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. नारी की देह का ही मह्त्व है ,इससे आगे बढने की फ़ुर्सत ही किसे है!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना