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पिता

पिता !
जैसे घर की नीव  में 
अदृश्यता से स्थित पत्थर
सहता है सम्पूर्ण भार
जताये बिन श्रम निरंतर

पिता !
मिट्टी में स्थित बीज
बिन संतुलन खोये 
बिना लोभ लालच
स्थित विशिष्ट दूरी पर
उर्जा पहुंचाता निरंतर

पिता!
जैसे बूढ़ा दरख्त 
चमड़े जितना सख़्त
रक्त जमा दे क्यू न शीत 
सहता धूप तपिश निरंतर

पिता !
रात के अंधयारे में
थकी आंखें दीवार पे
बच्चों की सपनों की उड़ान
रेखती रहती निरंतर


पिता 
एक ऐसा वजूद
जिसके घिसे  जूतों से
निकलता है संतानों के
अस्तित्व का मार्ग
जिनका जीवन में होना
सूरज सम उर्जा से
भरता रहना निरंतर

(पिता हमेशा पुरूष ही नहीं होता है मां भी पिता का दायित्व संभाल लेने की क्षमता रखती हैं)

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आप से सहमत हैं।
    बहुत ही उम्दा लिखा है।
    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

    जवाब देंहटाएं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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