१
नदी को समझने के लिए
पानी होना पड़ता है
और नदी किसी से
उम्मीद नहीं करती हैं
ठीक उसी तरह
छोडें हुये किनारों पर
नदी वापस नहीं लौटती हैं
२
धूप सूखाने डाली थी मैंने पर
मेरा गीला मन आसमान पे जा बैठा
३
मै ढोतीं हूँ अपने हिस्सें की धूप,अपनी पीठ पर
बाँधती हूँ थोडा सा संमदर अपने आँचल में
हौंसले की रेत अपनी मुट्ठी में
और उठाती हूँ, आसमान अपने कधों पर ।।
४
मौसम के बदलने का फर्क
वहां नहीं पड़ता
जहां तन्हाई
बड़ी शिद्दत से
साथ निभाती हो
५
यात्रा मेरी जीवन सी, मिली
अवेहलना हर्ष-दुत्कार सभी
स्त्री जीवन है ही ऐसी
हर भाव मुझे स्विकार अभी
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही मारक क्षणिकाएँ..!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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