युद्ध
युद्धों की रणनीतियाँ
तय की जाती रही हैं
हमेशा से
ऊँचे आसनों पे बैठकर
युद्ध के नाम से
जितनी डरती है एक माँ
उतना नहीं डरता एक राजा
मां भेजती है
रणभूमि में
अपने नसों में बहता हुआ लहू
और राजा केवल भेजता है
औजारों से लैस एक सैनिक
किसी सैनिक की शहादत पर
क्रंदन की ध्वनि से
नहीं विचलित होता है राजा
उसे तो सिंहासन के
डावांडोल की ध्वनि
भूगर्भ में उठते
भूकंप सी लगती है
राजा के लिए मृत सैनिक
मात्र गिनती के अंक बनकर रह जाते
और अख़बारों के पन्नों के लिए
महज एक ख़बर
ठीक उसी जगह छपी होती है
जहां पर पिछले दिनों
छपी थी खबर
मंत्रियों के सुरक्षा इंतजामों की ।
बेहद भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..!
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 21 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सच है मरने वाला बेटा एक माँ का होता है दोनो तरफ़ से ... सियासत की गोटियाँ पर भुगतने वाला आम आदमी ...
जवाब देंहटाएंव्वाहहहह...
जवाब देंहटाएंसटीक आंकलन
सादर..
वाह!बहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार आकर अच्छा लगा। अत्यंत गहरी और भावपूर्ण कविता।
आपकी कविता ने हर उस परिवार की पीड़ा सजीव कर दी जो आज भी अपने बेटे को रणभूमि में भेजता है।
यदि हर देह के नेता विश्व शांति के लिए सजग हो जाएं और भूमि, सत्ता , धन इत्यादि का लोभ त्याग दें तो युद्ध होगा ही नहीं।
इतनी घेई रचना के लिए हृदय से आभार। आपकी इसर्चन आए मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली।
एक अनुरोध और,कृपया मेरे भी ब्लॉग और आइये। मैं वहाँ अपनी स्वरचित कविताएं डालती हूँ। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिये आभारी रहूँगी।
लिंक कोय नहीं कर पा रही। मेरे नाम पर क्लिक करियेगा, वो आपको मेरे प्रोफ़ाइल तक ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग काव्यतरंगिनी के नाम पर क्लिक करियेगा, आप मेरे ब्लॉग तक पहुंच जाएंगी।
धन्यवाद
झकझोरती हुई रचना.....वाह!
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