कुछ लोग कुर्सी के उपर बैठे हैं
कुछ लोग कुर्सी के नीचे बैठे हैं
कुछ लोगों ने कुर्सी को घेर रखा है
कुछ लोग उचककर बस कुर्सी को ताक रहे हैं
और एक भीड़ ऐसी भी है
जिसने कभी कुर्सी देखी ही नहीं है
पर कुर्सी के ढांचे में जो कील ठोकी गई है
वो इसी भिड़ के पसीने का लोहा है
देखना है भीड़ कुर्सी को कब देखेगी
जब कुर्सी से कील अलग हो जाएगी तब
या जब इस कुर्सी पे बैठे व्यक्ति का जमीर जाग जायेगा
भीड़ के हाथ तो नहीं आने वाली ही कुर्सी ... कोई न कोई बैठ जाएगा इसपर कील घिस जाएगी अपनी जगह बनाते बनाते ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंकुर्सी ही की दुनिया है , जिसे मिल जाये तो वाह वाह न मिले तो हाय हाय ।
जवाब देंहटाएंरेखा श्रीवास्तव
धन्यवाद दी
हटाएंव्वाहहहह
जवाब देंहटाएंसादर..
धन्यवाद
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर
हटाएंसटीक राजनीतिक टिप्पणी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंसटीक प्रहार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंधन्यवाद सर
हटाएंआभार सर
जवाब देंहटाएंदेख तमाशा कुर्सी का
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
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