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क्षणिकाएं

क्षणिकाएं


धूप सूखाने डाली थी मैंने पर 
मेरा गीला मन आसमान पे जा बैठा

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कभी कभी लगता है
ये आसमान
मेरी कोई
पुरानी किताब है
और ये 
जब भी बरसात हैं
मेरा कोई
नया गम
दर्ज़ करता है

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रोज देखती है वो
खिडकी के पार का बाजार
रंग बिरंगी फुल
उसके अलग अलग खरिदार
कुछ फुल आयेगे उसके हिस्से भी
कुछ जायेगे ईश्वर के हिस्से
कुछ में होगी प्रार्थनायें 
कुछ में होगी वासनायें
पर हर स्थिती मे रौंदी जायेगी
ईश्वरीय भावनायें


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जितनी जरूरत थी 
उतनी ही एहिमियत थी 
उसके उपरांत
आप को अलगनी पर
टंगा जायेगा 
किसी पूराने कपड़े की तरह

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हर तरह से हो रहे हैं वार
बीज से लेकर खरपतवार
वर्तमान की सतह से लेकर
भविष्य के गर्भ तक
बना दी गई है औरत देह
बिछी है चौसर की बिसात



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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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