*गुलाब* की पंखुड़ियों पर
गिरी ओंस की बूंदें
प्रमाण होती हैं
किसानों के खेतों में गिरे पसीनों की
उसने मिट्टी में सहेजें होते हैं
रोटी, कपड़े और मकान के
कुछ चमकिले रंग
फूलों के मुरझाने से
उदास होती हैं स्त्री
खोल देती हैं वो स्मृतियों की गांठें
और बह जाता है नमक का दरिया
कुछ इसी तरह अपनी
फ़सल की बरबादी पर
बच्चों के अंतड़ियों में पड़ी भूख
लाल रक्त बन निकलता है आंखों से
गुलाब का खिलना
केवल प्रेम को बचाने भर नहीं है
बल्कि हर पंखुड़ियों के नीचे
तह कर रखीं होती हैं
ईश्वर ने एक जरूरत किसान की
सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
"प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बेहतरीन बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
शानदार सृजन..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम..
एक सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर।