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गुलाब

*गुलाब* की पंखुड़ियों पर
गिरी ओंस की बूंदें
प्रमाण होती हैं
किसानों के खेतों में गिरे पसीनों की
उसने मिट्टी में सहेजें होते हैं
रोटी, कपड़े और मकान के 
कुछ चमकिले रंग

फूलों के मुरझाने से
उदास होती हैं स्त्री
खोल देती हैं वो स्मृतियों की गांठें
और बह जाता है नमक का दरिया
कुछ इसी तरह अपनी
फ़सल की बरबादी पर
बच्चों के अंतड़ियों में पड़ी भूख
लाल रक्त बन निकलता है आंखों से

 गुलाब का खिलना
केवल प्रेम को बचाने भर नहीं है
बल्कि हर पंखुड़ियों के नीचे
तह कर रखीं होती हैं
ईश्वर ने एक जरूरत किसान की


टिप्पणियाँ

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
    "प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।
    सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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